Tuesday 29 March 2016

ए2 गौ दूग्ध - a2 Desi cow's milk

ए2 गौ दूग्ध - a2 Desi cow's milk
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है।इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है।
भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है।
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है. भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं ।
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.
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Thursday 10 March 2016

पंचगव्य एवं ग्रामीणअर्थव्यवस्था

पंचगव्य एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था
हमारे देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। प्राचीन काल से ही हमारे गाँव आर्थिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक तौर से आत्मनिर्भर थे। परंतु आजकल नजारा बदल गया है। बड़े-बड़े कारखाने खड़े कर दिए गए है। गाँवों को कच्चा माल देने वाला एक माध्यम बना लिया है। गाँव के अंदर जो अनेक कारीगर थे बढ़ई, लुहार, राजमिस्त्री, उन सब लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। गाँव के लोग बेकार हो गए हैं और शहर की तरफ दौड़ने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं है। शहर में भी कोई काम न मिलने के कारण वे अनेक गैरकानूनी कामों में लिप्त हो गए है। भारत की अर्थव्यवस्था जो सदियों से कायम थी, छिन्न-भिन्न हो गई है। 
पंचगव्य -
प्राचीन काल से ही गाय को पूरे भारत वर्ष में माता की तरह पूजा जाता है। यह किसी करुणा वश या प्रेम भाव में बहकर नहीं किया जाता। अपितु हमारे पूर्वजों ने गाय के महत्त्व को समझा एवं सब कुछ जानने के बाद ही वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि गाय में पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सम्भालने की क्षमता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से गाय दूध, घी, दही, गोमूत्र, गोमय (गोबर) आदि का स्थान-स्थान पर महत्त्व बतलाया गया है। इन द्रव्यों को आयुर्वेद में 'गव्य' कहा गया है। पाँचों को मिलाकर पंचगव्य कहते हैं। हमारा भारत वर्ष अभी कितनी ही अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है। इस वर्तमान अर्थव्यस्था में गोपालन एवं पंचगव्य ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो हमारे गाँव को पुनः आत्मनिर्भर बना सकती है। पंचगव्य एंव गोपालन ग्रामीण कृषि, ऊर्जा स्रोत, चिकित्सा, घरेलू उपयोगी वस्तुएँ, रोजगार आदि का मूल आधार बने तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों का नजारा ही बदल सकता है।
पंचगव्य एवं कृषि-
गाय के गोबर से सर्वोत्तम खाद तथा गोमूत्र से कीट नियंत्रक औषधियाँ निर्मित होती हैं— यह एक अभिप्रमाणित तथ्य है। गौ आधारित कीटनाशक तथा जैविक खाद कम खर्च में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ही तैयार किए जा सकते हैं। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि जैविक खाद एवं कीटनाशक जमीन की उर्वरा शक्ति को
बढ़ाते हैं एवं यह पर्यावरण मित्रवत भी है। इनसे उत्पादित पदार्थों की गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं प्रति यूनिट उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है। जैविक खादों में कम लागत व गुणोत्तर उत्पादन से सकल आय में बढ़ोत्तरी होती है। जैविक खेती गाँवों के बेरोजगार लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करती है। कई पश्चिमी देश भी रासायनिक विधि को छोड़कर जैविक खेती की ओर जा रहे हैं। भारत में कृषि क्षेत्र छोटे-छोटे वर्गों में बँटा हुआ है, जहाँ हरेक के लिए ट्रैक्टर रख पाना सम्भव नहीं है। कई शोधों द्वारा यह पता चला है कि ट्रैक्टर के प्रयोग से हमारी धरती की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह प्रदूषण का भी कारण है। बैलचालित आधुनिक ट्रैक्टर द्वारा इन सब समस्याओं का हल किया जा सकता है। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बैलचालित ट्रैक्टर ही आर्थिक तौर पर सही है।

पंचगव्य ग्रामीण ऊर्जा का स्रोत
भारत वर्ष में कृषि, व्यावसायिक व घरेलू उपयोग में प्रयोग की जा रही ऊर्जा का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम है। इसके लिए हमें विदेशों पर आश्रित रहना पड़ता है। कुल गोवंशीय पशुओं से हमारे देश में लगभग 11,500 लाख टन गोबर प्रतिवर्ष मिलता है। यदि इस गोबर से बायोगैस प्लांट संचालित किया जाए तो हमारी अधिकांश ऊर्जा समस्या समाप्त हो जाएगी और हमें किसी पर आश्रित भी नहीं रहना पड़ेगा।
गोबर गैस संयंत्र अनुपयोगी गोवंश के गोबर से भी चलाया जा सकता है। इससे प्राप्त गैस का प्रयोग ईंधन व रोशनी के लिए किया जा सकता है, जिससे वनों की कटाई के दबाव को कम किया जा सकता है और पेट्रोलियम की खपत भी कम की जा सकती है। ग्रामीणों को बिना धुएं का स्वच्छ ईंधन भी मिल जाएगा। गोबर गैस संयंत्र से जेनरेटर चलाकर बिजली भी पैदा की जा सकती है। कृषि के सभी कार्यों के साथ-साथ भारवाहन यातायात का मुख्य स्रोत गाँवों में बैल ही है। बैलचालित ट्रैक्टर, बैलचालित जेनरेटर तथा बैलगाड़ी के प्रयोग से गाँव की वर्तमान स्थिति को बदला जा सकता है जो कि पेट्रोलियम पर आधारित है। इनके प्रयोग से रोजगार के अवसर भी खुलेंगे। बायोगैस बॉटलिंग पर भी आजकल शोध चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस पर भी काफी सफलता हासिल कर ली है। इसके पूरा हो जाने पर बायोगैस को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए पाइपों की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पंचगव्य चिकित्सा
दवाओं, डॉक्टरों और अस्पतालों पर आजकल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं फिर भी रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गाँवों के गरीब महंगी आधुनिक चिकित्सा कराने में असमर्थ हैं। हमारा आर्ष साहित्य गो महिमा से भरा हुआ है। अब विज्ञान भी गोबर व गोमूत्र के गुणों को समझने लगा है। आयुर्वेद शास्त्र में गोदुग्ध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र की स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में असीम महिमा वर्णित की गई है। अधिकतर सभी रोगों का इलाज 'पंचगव्य' चिकित्सा में मौजूद है। इससे सम्बन्धित कई प्रमाण वैज्ञानिकों ने पेश किए हैं। गोमूत्र में ताम्र, लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य खनिज जैसे—कार्बोलिक एसिड, पोटाश और लैक्टोज नामक तत्व मिलते हैं। गोबर में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्जीन, कॉपर, बोरीन, मालीन्डनम आदि तत्व पाए जाते हैं, इन तत्वों के कारण गोमूत्र-गोबर से विविध प्रकार की औषधियाँ बनती हैं और यह सभी प्रकार के रोगों पर काम करती है।

पंचगव्य एवं मनुष्य का पोषण
गाय का दूध किसी भी अन्य दूध के मुकाबले ज्यादा श्रेष्ठ है इसीलिए आज भी डॉक्टर नन्हें- मुन्हें बच्चों को ऊपर का दूध पिलाने के लिए गाय के दूध की ही सलाह देते हैं। गाय के दूध में वसा, कार्बोहाइट्रेट, प्रोटीन के अलावा अन्य.एन्जायम पाए जाते हैं जो हमारे भोजन को.सुपाच्य बनाते हैं। धरती पर दूध ही एक ऐसा तत्व है जिसे पूर्ण आहार माना गया है। इसमें हमारे शरीर के विकास व वृद्धि के लिए आवश्यक सभी तत्व उपलब्ध हैं। दूध एवं दूध के अन्य उत्पाद से गाँव में रोजगार के काफी अवसर खुल जाएंगे।

पंचगव्य घरेलू उपयोगी वस्तुए
गोमूत्र व गोमय की विशिष्टताओं के कारण न केवल उनका प्रयोग रोगों के शमन के लिए किया जा सकता है बल्कि अनेक ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो कुटीर उद्योग व ग्रामोद्योग का आधार बन सकते हैं। इससे त्वचा रक्षक साबुन, दंतमंजन, डिस्टेम्पर, धूपबत्ती, फिनायल, शैम्पू, उबटन, तेल, मच्छर विनाशक, मरहम आदि बनते हैं। इन सभी वस्तुओं का उत्पादन गौशालाएँ आयुर्वेद के आधार पर कर रही हैं, जिनका संतुष्टी विश्लेषण भी किया गया है। इस रिपोर्ट के हिसाब से सभी उपभोक्ता 80-90 प्रतिशत संतुष्ट हैं तथा सभी ने इन वस्तुओं के अनेक फायदे भी बताए हैं।

पंचगव्य एवं रोजगार
उपर्युक्त सभी बातों से यह स्पष्ट हो चुका है कि अगर गोवंश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों की कई समस्याओं के साथ रोजगार की सबसे बड़ी समस्या भी दूर हो जाएगी, फिर से गाँव आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा जो अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी फिर से कायम हो जाएगी।

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गोवत्स द्वादशी


गोवत्स द्वादशी

सत्त्वगुणी, अपने सान्निध्यसे दूसरोंको पावन करनेवाली, अपने दूधसे समाजको पुष्ट करनेवाली, अपना अंग-प्रत्यंग समाजके लिए अर्पित करनेवाली, खेतोंमें अपने गोबरकी खादद्वारा उर्वराशक्ति बढानेवाली, ऐसी गौ सर्वत्र पूजनीय है । हिंदू कृतज्ञतापूर्वक गौ को माता कहते हैं । जहां गोमाता का संरक्षण-संवर्धन होता है, भक्तिभावसे उसका पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता। भारतीय संस्कृति में गौ को अत्यंत महत्त्व दिया गया है । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभ में आती है । यह गोमाता का सवत्स अर्थात उसके बछडेके साथ पूजन करने का दिन है ।

१. गोमाता काे सम्पूर्ण विश्वकी माता क्याें कहते हैं ?
गोमाताकी रीढमें सींगसे पूंछतक ‘सूर्यकेतु’ नामक एक विशेष नाडी होती है । गोमाता अपने सींगोंके माध्यमसे सूर्यकी ऊर्जा अवशोषित करती है तथा ‘सूर्यकेतु’ नाडीमें वाहित करती है । सूर्यसे मिलने वाली ऊर्जा दो प्रकारकी होती है । क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा । क्रिया ऊर्जा गति तथा ज्ञा ऊर्जा विचारशक्ति दान करती है । जुगाली की क्रियाके समय सूर्यसे प्राप्त दोनों ऊर्जाआेंको चबाकर वह अन्नमें मिला देती है । औषधीय वनस्पतियों के रस, क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा का संयोग होकर एक अमृत गोमाता के उदर में पहुंचता है । वहां सर्व पाचन पूर्ण होनेके पश्चात यह अमृत तीन भागोंमें बंटता है – पृथ्वीके पोषण हेतु गोमय, वायुमण्डल के पोषण हेतु गोमूत्र तथा प्राणिजगत, विशेषतः मानवके पोषणके लिए दूध । इस कार गोमाताके कारण सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण होता है । इसलिए विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि ‘गावो विश्वस्य मातरः ।’ अर्थात गाय सम्पूर्ण विश्वकी माता है ।

२. गौमें सभी देवताओंके तत्त्व आकर्षित होते हैं
गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं । दत्तात्रेय देवताके साथ भी गौ है । उनके साथ विद्यमान गौ पृथ्वी का प्रतीक है । प्रत्येक सात्त्विक वस्तुमें कोई-ना-कोई देवताका तत्त्व आकर्षितहोता है । परंतु गौकी यह विशेषता है, कि उसमें सभी देवताओंके तत्त्व आकृष्ट होते हैं । इसीलिए कहते हैं, कि गौ में सर्व देवी-देवता वास करते हैं । गौसे प्राप्त सभी घटकोंमें, जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गोमूत्रमें सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं ।

३. गोवत्स द्वादशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
ऐसी कथा है कि समुद्रमंथनसे पांच कामधेनु उत्पन्न हुर्इं । उनमेंसे नंदा नामक धेनुको उद्देशित कर यह व्रत मनाया जाता है । वर्तमान एवं भविष्यके अनेक जन्मोंकी कामनाएं पूर्ण हों एवं पूजित गौके शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षोंका स्वर्गमें वास हो । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है । गोवत्स द्वादशी के दिन श्री विष्णुकी आपतत्त्वात्मक तरंगें सक्रिय होकर ब्रह्मांडमें आती हैं । इन तरंगोंका विष्णु लोक से ब्रह्मांड तक का वहन विष्णु लोक की एक कामधेनु अविरत करती हैं । उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कामधेनुके प्रतीकात्मक रूपमें इस दिन गौका पूजन किया जाता है ।

४. गोवत्स द्वादशी व्रतके अंतर्गत उपवास
इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां उपवास एक समय भोजन कर रखाती है । परंतु भोजन में गायका दूध अथवा उससे बने पदार्थ, जैसे दही, घी, छाछ एवं खीर तथा तेलमें पके पदार्थ, जैसे भुजिया, पकौडी इत्यादि ग्रहण नहीं करते, साथ ही इस दिन तवे पर पकाया हुआ भोजन भी नहीं करते । प्रातः अथवा सायंकाल में सवत्स गौ की पूजा की जाती हैं ।
५. गोवत्स द्वादशी को गौपूजन प्रात अथवा सायंकाल में करनेका शास्त्रीय.आधार
प्रातः अथवा सायंकाल में श्री विष्णु के प्रकट रूपकी तरंगें गौमें अधिक मात्रामें आकर्षित होती हैं । ये तरंगें श्री विष्णुके अप्रकट रूपकी तरंगोंको १० प्रतिशत अधिक मात्रामें गतिमान करती है । इसलिए गोवत्स द्वादशीको गौपूजन सामान्यतः प्रातः अथवा सायंकालमें करनेके लिए कहा गया है । उपरांत ‘इस गौ के शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षों तक मुझे स्वर्गसमान सुख की प्राप्ति हो, इसलिए मैं गौपूजन करता हूं । इस प्रकार संकल्प किया जाता है । प्रथम गौ पूजन का संकल्प किया जाता है । तत्पश्चात पाद्य, अर्घ्य, स्नान इत्यादि उपचार अर्पित किए जाते हैं। वस्त्र अर्पित किए जाते हैं । उपरांत गोमाता को चंदन, हलदी एवं कुमकुम अर्पित किया जाता है । उपरांत अलंकार अर्पित किए जाते हैं । पुष्पमाला अर्पित की जाती है । तदुपरांत गौके प्रत्येक अंगको स्पर्श कर न्यास किया जाता है । गौ पूजन के उपरांत बछडेको चंदन, हलदी, कुमकुम एवं पुष्पमाला अर्पित की जाती है । उपरांत गौ तथा उसके बछडेको धूपके रूपमें दो अगरबत्तियां दिखाई जाती हैं । उपरांत दीप दिखाया जाता है । दोनों को नैवेद्य अर्पित किया जाता है । उपरांत गौ की परिक्रमा की जाती है । पूजनके उपरांत पुनः गोमाता को भक्तिपूर्वक प्रणाम करना चाहिए । गौ प्राणी है । भय के कारण वह यदि पूजन करने न दें अथवा अन्य किसी कारण वश गौ का षोडशोपचार पूजन करना संभव न हों, तो पंचोपचार पूजन भी कर सकते हैं । इस पूजनके लिए पुरोहितकी आवश्यकता नहीं होती ।

६. गोवत्सद्वादशीसे मिलनेवाले लाभ
गोवत्सद्वादशीको गौपूजन का कृत्य कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।
इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचर में ईश्वरीय तत्त्व का दर्शन करनेकी सीख देता है । व्रती सभी सुखों को प्राप्त करता है ।
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गीर गाय

भारत में सनातन काल से पायी जाने वाली "गीर" गाय जो 65 लीटर दूध देने का रिकार्ड बना चुकी है, जो देशी नस्ल की टिकाऊ और बीमार न होने वाली गाय है । उसी को यदि ब्रीडिंग किया गया होता तो आज भारत में हर तरफ दुधारू गायों का तांता लग गयाहोता । गीर गाय शारीर से भारी होने के साथ साथ हर मामले में भैंस को मात देती है । यह भैंस से कम खाती है लेकिन दूध भैंस से ज्यादा और गाढा होता है । भैंस बदबू मारती है लेकिन गाय से जगह शुद्ध होती है । गीर गाय देशी होने के कारण इसका दूध दवा है । यह गाय गोबर और गो-मूत्र भरपूर मात्रा में देती है । शुद्ध गीर गाय भारत में सिर्फ 5000 की संख्या में ही बची है ।
एक साजिश के तहत विदेशियों ने भारत में जर्सी गाय (एक प्रकार का सूअर) देकर भारत की निरोगित देशी गायो को कटवाकर सब मांस यूरोप में सप्लाई करवा लिया और यह अभी तक जारी है । गीर गायों का व्यापक ब्रीडिंग होने से लोग भैंस पालना कम कर देंगे । गीर गाएं भरी मात्रा में विदेशों को बेचीं गयी, खासकर ब्राजील में । इस पर रोक लगाकर भारत के हर गाँव में गीर गाय की नस्ल पहुचाई जाये और यह काम सरकार ही कर सकती है ।

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Gaumata related Quotes

Quotes
कुछ संतो ने, विद्वानों ने गौ माता के बारे मे इस तरह कहा :
★गौवंश की रक्षा मे देश की रक्षा समाई हुई है।---------- मदन मोहन मालवीयजी |
★गौवंश की रक्षा इश्वर की सारी मूक सृष्टी की रक्षा करना है,भारत की सुख समृधि गौ के साथ जुडी है | ---------महात्मा गाँधी जी।
★समस्त गौ वंश की हत्या कानूनन बंद होनी चाहिए.अब भारत आजाद है | ------------ गौ प्राण करपात्रीजी महाराज |
★गौ का समस्त जीवन देश हितार्थ समर्पित है,अतः भारत मे गौ वध नहीं होना चाहिए | ------------माता आनंदमयी जी माँ |
★यही आस पूरण करो तुम हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छूटे खेद भारी | -------------गुरु गोविन्द सिंहजी |
★भारत मे गौवंश के प्रति करोडो लोगो की आस्था है, उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए | -------------लाल बहादुर शास्त्री |
★सम्पूर्ण गौवंश परम उपकारी है | सबका कर्तव्य है तन, मन, धन लगाकर गौ हत्या पूर्ण रूप से बन्द करावे. ----------सेठ जुगल किशोर बिडला जी |
★जब तक भारत की भूमि पर गौ रक्त गिरेगा तब तक देश सुख-शांति ,धन-धान्य, से वंचित रहेगा| ------------गौ प्राण हनुमान प्रसाद पोद्दारजी |
★सम्पूर्ण गौ वंश हत्या बंद कर के राष्ट्र की उन्नति के लिए गौ को राष्ट्र पशु घोषित कर भारत सरकारयशजीवी बने | -----गौ रक्षा हेतु ७३ दिन तक अन्न-जल त्याग देने वाले पूरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीर्थ जीमहाराज |  
★Killing a bull is equivalent to killing a cow.  (Jesus Christ)
★Cow’s milk is tonic, its ghee is ambrosia and its meat is disease.  (Hazarat Mohamed)
★Cow is the source of progress and prosperity.  In many ways it is superior to one’s mother. (Mahatma Gandhi) 
★Cow protection is the eternal dharma of India (Dr. Rajendra Prasad, 1st President of India)
★One cow in its life time can feed 4,10,440 people once a day while its meat is sufficient only for 80 people. (Swami Dayanand Saraswati)
★Till cows are slaughtered, no religious or social function can bring its fruit. (Devarah baba)
★The first section of Indian Constitution should be on prohibition for Cow slaughter. (Madan Mohan Malviya)
★The pressure of Muslims for cow slaughter is the limit of foolishness. I have studied both Koran and Bible. According to both of them, to kill a cow even indirectly is a great sin. (Acharya Vinoba Bhave)
★Since the cruel killing of cows and other animal have commenced, I have anxiety for the future generation. (Lala Lajpat Rai)
★Kill me but spare the cow.  (Lokmanya Tilak)
★According to me under the present circumstances, there is nothing more scientific and intelligent act than banning cow slaughter.  (Jai Prakash Narayan)
★Cow is the God even of God.  (Shri Haridas Shastri)
★We want to live in the world while being called as Hindus then we have to protect cows with all our might. (Shri Prabhudata Brahmachari)
★The offensive act of British Rule towards cows will go down in the history as an abominable deed.  (Lord Lonlithgo)
★Cow is the foundation of our economy. (Giani Zail Singh – Former President)
★Neither Koran nor the Arabian Customs permit killing cow. (Hakim Ajamal Khan)

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Tuesday 23 February 2016

ABOUT US



1) Our Aim is to care for stray , abandoned cows , bulls , retired oxen , and orphaned calves. We provide them hay, flour, fresh grass , clean water , medical attention and a place where they can recuperate from injuries and stay peacefully.

2).Our Aim to protect the Cows & Improve their Feeding & Living Standards & keep them in clean atmosphere.

3). Our Aim to set up world class Spiritual Center for Human Beings for Peace , Prosperity & Good Health.

4). Our Aim to spread the awareness about the importance of cow.

5).Our Aim to know more about the rich properties of cow .
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देसी गाय का घी या गाय का देसीघी ?







आज भारत में बहुत बड़ी मात्रा में जर्सी और HF गाय का दूध और इस से ही बने घी को गाय का घी बता कर बेचा जा रहा है| वास्तविकता में इन जानवरों को गाय नहीं कहा जा सकता| भारतीय गाय का दूध A2 क्वालिटी का दूध होता है जबकि जर्सी का दूध A1 क्वालिटी का जो की जहर माना जाता है| कई जानी मानी कंपनिया भारत में इस A1 दूध से बने घी को गाय का देसी घी कह कर बेच रहे है| हमे गाय के देसी घी और देसी गाय के घी में अंतर समझना होगा |शोध के द्वारा पता चला हे की भारतीय देसी गाय के दूध में PROLINE नाम का एमिनो एसिड होता हे जो की INSOLEUCINE एमिनो एसिड से जुडा होता हे | इस दूध को A2 प्रकार का दूध कहते हे| इसमें कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता होती हे, जैसे मोटापा, कैंसर, अस्थमा, मानसिक रोग, जोड़ो का दर्द इत्यादि | A2 दूध में Omega ३ का स्तर बहुत ज्यादा होता हे, जो रक्त में जमे हुए cholestrol को कम करता है| A2 दूध में मोजूद Cerebrosidesa दिमाग की शक्ति के लिए बहुत उपयोगी होता हे और Strontium शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बडाता है| इसके विपरीत जो दूध और घी, गाय का देसी घी कह कर बाजार में बेचा जा रहा हे कही वो A1 क्वालिटी का तो नहीं है जो की उच्च रक्तचाप, मधुमेह, Autism, Metabolic degenerative disease और मानसिक रोगों का कारण बनता है | तो जब भी आप घी लेने जाए तो ये जरूर ध्यान दे की घी देसी गाय का हो न की गाय का देसी घी|

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Monday 22 February 2016

गोपाष्टमी पर्व -गौ माता के पूजन कादिन

वैदिक सनातन धर्म में गाय को माँ के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गौमाता इक चलता फिरता साक्षात देवालय है जिसमे सभी 33 कोटि देवी देवता वास करते है गौ माता के गोबर में लक्ष्मी तथा मूत्र में माता गंगा का वास होता हैं ! गौ माता में तीनो गुण दैविक , दैहिक , भौतिक विद्यमान होते हैं ! अत: यह तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। गौ माता के पूजन से उनकी कृपा प्राप्ति होती हैं जिससे समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं ! गऊ माँ सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ सिद्धि प्रदान करने वाली है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में सर्वसुखप्रदा देवी कहा गया है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
★ क्या है गोपाष्टमी....
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण अपने अग्रज बलराम
जी के साथ नन्द बाबा व यशोदा मैया की अनुमति से गऊ चराने के लिये पहली बार बन गये थे
l गोपाष्टमी को गाय की विधिवत पूजा की जाती है ।वैसे तो गोपाष्टमी पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन ब्रज में तो यह एक प्रमुख पर्व के रूप में मनाई जाती है।
★कब मनाई जाती हैगोपाष्टमी...??
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है
★क्यूँ मनाते हैं
गोपाष्टमी? महाराज नंद जी ने यह उत्सव तब प्रारंभ किया था जब भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम पांच साल की आयु से बढ़ छठे साल में प्रवेश किया था और वे एक पूर्ण ग्वाले का रूप धारण कर चुके थे ! वृन्दावन में शिशुओं को जोकि पांच साल से छोटे या बराबर होते थे उन्हें सिर्फ बछड़ो की देखभाल करने को दिया जाता था ! जब शिशु छठे साल में प्रवेश करते थे तब ही उन्हें गाय की देखभाल करने व् चराने को दिया जाता था ! जब भगवान् श्री कृष्ण और बलराम जी भी छह साल की आयु में प्रवेश कर चुके तब नन्द बाबा ने उन्हें भी गौ चराने व् उनकी देखभाल करने का अवसर इसी दिन प्रदान किया था ! भगवान कृष्ण के इसप्रकार पूर्ण रूप से ग्वाले बन जाने की प्रक्रिया को वृन्दावन तथा सभी कृष्ण मंदिर में धूम धाम के साथ आज भी मनाया जाता हैं ! गौचरण करने के कारण ही श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है !
★कैसे करे गोपाष्टमी पूजन...!!
इस दिन भगवान् श्री कृष्ण, श्री बलराम और गौ माता की पूजा का विधान माना जाता हैं गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गाय की विधिवत पूजा की जाती है। जिसमें प्रातःकाल की बेला में गौचरण जाने के पूर्व गौमाता को स्नान कराया जाता है उसके उपरांत गौमाता को, श्रॄंगार की विभिन्न वस्तुओं, नवीन वस्त्रों व फूल मालाओ से श्रंगार कर गले में सुंदर घंटी व् पैरों में पैजनिया आदि पहनाकर सजाया जाता हैं ! गौ माता के सींगो पर चुनड़ी का पट्टा बाधा जाता हैं ! उसके उपरांत विधिपूर्वक रोली चंदन केसर अक्षत आदि से गऊ माता के ललाट पर तिलक करना चाहिये l गौ माता को सजाकर सच्चे ह्रदय से गौ माता का मनन करते हुए निम्न मंत्रोपचार करना चाहिए ! मंत्र "गावो में अग्रतः सन्तु, गावो में सन्तु पृष्ठतः ! गावो में सर्वतः सन्तु, गवां मध्ये वसाभ्यहम !!" इसके उपरान्त शंख ध्वनि आदि करते हुये धूप दीप से गौमाता की आरती की जानी चाहिये पूजा के बाद हरा चारा, घास, गुड़, जलेबी, फल व पौष्टिक आहार चना दाल आदि खिला कर गौमाता की परिक्रमा व साष्टांग दंडवत प्रणाम कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगा कर सभी परिजनों बंधुबान्धवों व विश्व के कल्याण की मंगल कामना करनी चाहिये l तदुपरान्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार गऊ माता के लिये पौष्टिक भोजन चारे आदि की व्यवस्था हेतु यथासम्भव दान करना चाहिये सायंकाल में गौ चारण से लौटती गौमाता को दंडवत प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। पौराणिक मान्यता है कि गोपाष्टमी पर निर्मल मन से गौमाता का विधिवत पूजन करने से गौमाता का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामना पूरी होती है। ऐसी भी आस्था है ‍कि इस दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़ा पुण्य मिलता है।
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गाय मिटाती है वास्तुदोष







1. वास्तु ग्रन्थ 'मयतम् ' में कहा गया है की जिस प्लाट पर भवन, घर का निर्माण करना हो, वहां पर बछड़े वाली गाय बांधने से वास्तु दोषों का स्वतः निवारण हो जाता है। नवजात बछड़े को जब गाय दुलार कर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिर कर उसे पवित्र बनता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है ।
2. महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठ कर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है। निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम् | विराजयति तं देशं पापं चास्यपकर्षति ||
3. सनातन धर्म के ग्रंथो में कहा गया है कि - सर्वे देवाः स्तिथा देहे सर्वा देवमयी हि गौ:। गाय के देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।
4. घर के आँगन में गाय रखने से घर सुखी और समृद्धिशाली बनता है। आँगन में गाय के होने पर घर के सभी वास्तुदोषों का बुरा प्रभाव स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
5. यदि कोई व्यक्ति गाय घर में नहीं रख सकता तो उसे सुबह शाम भगवान के सामने गाय के दूध से बने घी का दीपक लगाना चहिये। गाय के घी के दीपक से घर के वास्तु दोष दूर होते है। इसके प्रभाव से घर कई ऋणात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी निष्क्रिय होता है। घर का वातावरण शुद्ध होता है और परिवार के सदस्य निरोगी बने रहते है।
6. प्रातः स्नान के पश्चात गाय माता को स्पर्श करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
7. गौमूत्र भी वास्तुदोषों को दूर करने में लाभकारी है। घर में गोमूत्र छिड़कने से सभी वास्तुदोष निष्क्रिय हो जाते है। गौमूत्र के प्रभाव स घर में फैले सभी कीटाणु नष्ट हो जाते है।
8. गाय के पाँव की धूली का अपना महत्व है। गाय के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्थान का पुण्य मिलता है।
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गाय का पन्च्गव्य घी है अमृत,कई रोगो कोकरता है दूर







गाय का पन्च्गव्य घी है अमृत,कई रोगो को करता है दूर
गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है। गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है। गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है। (20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है। गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै। गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है। गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है। हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है। हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी। गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें। हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा। गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है। देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है। घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है। फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है। सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा। दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा। यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है।
वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है। एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है। गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
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