वैदिक सनातन धर्म में गाय को माँ के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गौमाता इक चलता फिरता साक्षात देवालय है जिसमे सभी 33 कोटि देवी देवता वास करते है गौ माता के गोबर में लक्ष्मी तथा मूत्र में माता गंगा का वास होता हैं ! गौ माता में तीनो गुण दैविक , दैहिक , भौतिक विद्यमान होते हैं ! अत: यह तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। गौ माता के पूजन से उनकी कृपा प्राप्ति होती हैं जिससे समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं ! गऊ माँ सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ सिद्धि प्रदान करने वाली है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में सर्वसुखप्रदा देवी कहा गया है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
★ क्या है गोपाष्टमी....
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण अपने अग्रज बलराम
जी के साथ नन्द बाबा व यशोदा मैया की अनुमति से गऊ चराने के लिये पहली बार बन गये थे
l गोपाष्टमी को गाय की विधिवत पूजा की जाती है ।वैसे तो गोपाष्टमी पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन ब्रज में तो यह एक प्रमुख पर्व के रूप में मनाई जाती है।
★कब मनाई जाती हैगोपाष्टमी...??
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है
★क्यूँ मनाते हैं
गोपाष्टमी? महाराज नंद जी ने यह उत्सव तब प्रारंभ किया था जब भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम पांच साल की आयु से बढ़ छठे साल में प्रवेश किया था और वे एक पूर्ण ग्वाले का रूप धारण कर चुके थे ! वृन्दावन में शिशुओं को जोकि पांच साल से छोटे या बराबर होते थे उन्हें सिर्फ बछड़ो की देखभाल करने को दिया जाता था ! जब शिशु छठे साल में प्रवेश करते थे तब ही उन्हें गाय की देखभाल करने व् चराने को दिया जाता था ! जब भगवान् श्री कृष्ण और बलराम जी भी छह साल की आयु में प्रवेश कर चुके तब नन्द बाबा ने उन्हें भी गौ चराने व् उनकी देखभाल करने का अवसर इसी दिन प्रदान किया था ! भगवान कृष्ण के इसप्रकार पूर्ण रूप से ग्वाले बन जाने की प्रक्रिया को वृन्दावन तथा सभी कृष्ण मंदिर में धूम धाम के साथ आज भी मनाया जाता हैं ! गौचरण करने के कारण ही श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है !
★कैसे करे गोपाष्टमी पूजन...!!
इस दिन भगवान् श्री कृष्ण, श्री बलराम और गौ माता की पूजा का विधान माना जाता हैं गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गाय की विधिवत पूजा की जाती है। जिसमें प्रातःकाल की बेला में गौचरण जाने के पूर्व गौमाता को स्नान कराया जाता है उसके उपरांत गौमाता को, श्रॄंगार की विभिन्न वस्तुओं, नवीन वस्त्रों व फूल मालाओ से श्रंगार कर गले में सुंदर घंटी व् पैरों में पैजनिया आदि पहनाकर सजाया जाता हैं ! गौ माता के सींगो पर चुनड़ी का पट्टा बाधा जाता हैं ! उसके उपरांत विधिपूर्वक रोली चंदन केसर अक्षत आदि से गऊ माता के ललाट पर तिलक करना चाहिये l गौ माता को सजाकर सच्चे ह्रदय से गौ माता का मनन करते हुए निम्न मंत्रोपचार करना चाहिए ! मंत्र "गावो में अग्रतः सन्तु, गावो में सन्तु पृष्ठतः ! गावो में सर्वतः सन्तु, गवां मध्ये वसाभ्यहम !!" इसके उपरान्त शंख ध्वनि आदि करते हुये धूप दीप से गौमाता की आरती की जानी चाहिये पूजा के बाद हरा चारा, घास, गुड़, जलेबी, फल व पौष्टिक आहार चना दाल आदि खिला कर गौमाता की परिक्रमा व साष्टांग दंडवत प्रणाम कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगा कर सभी परिजनों बंधुबान्धवों व विश्व के कल्याण की मंगल कामना करनी चाहिये l तदुपरान्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार गऊ माता के लिये पौष्टिक भोजन चारे आदि की व्यवस्था हेतु यथासम्भव दान करना चाहिये सायंकाल में गौ चारण से लौटती गौमाता को दंडवत प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। पौराणिक मान्यता है कि गोपाष्टमी पर निर्मल मन से गौमाता का विधिवत पूजन करने से गौमाता का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामना पूरी होती है। ऐसी भी आस्था है कि इस दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़ा पुण्य मिलता है।
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