Thursday 10 March 2016

गोवत्स द्वादशी


गोवत्स द्वादशी

सत्त्वगुणी, अपने सान्निध्यसे दूसरोंको पावन करनेवाली, अपने दूधसे समाजको पुष्ट करनेवाली, अपना अंग-प्रत्यंग समाजके लिए अर्पित करनेवाली, खेतोंमें अपने गोबरकी खादद्वारा उर्वराशक्ति बढानेवाली, ऐसी गौ सर्वत्र पूजनीय है । हिंदू कृतज्ञतापूर्वक गौ को माता कहते हैं । जहां गोमाता का संरक्षण-संवर्धन होता है, भक्तिभावसे उसका पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता। भारतीय संस्कृति में गौ को अत्यंत महत्त्व दिया गया है । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभ में आती है । यह गोमाता का सवत्स अर्थात उसके बछडेके साथ पूजन करने का दिन है ।

१. गोमाता काे सम्पूर्ण विश्वकी माता क्याें कहते हैं ?
गोमाताकी रीढमें सींगसे पूंछतक ‘सूर्यकेतु’ नामक एक विशेष नाडी होती है । गोमाता अपने सींगोंके माध्यमसे सूर्यकी ऊर्जा अवशोषित करती है तथा ‘सूर्यकेतु’ नाडीमें वाहित करती है । सूर्यसे मिलने वाली ऊर्जा दो प्रकारकी होती है । क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा । क्रिया ऊर्जा गति तथा ज्ञा ऊर्जा विचारशक्ति दान करती है । जुगाली की क्रियाके समय सूर्यसे प्राप्त दोनों ऊर्जाआेंको चबाकर वह अन्नमें मिला देती है । औषधीय वनस्पतियों के रस, क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा का संयोग होकर एक अमृत गोमाता के उदर में पहुंचता है । वहां सर्व पाचन पूर्ण होनेके पश्चात यह अमृत तीन भागोंमें बंटता है – पृथ्वीके पोषण हेतु गोमय, वायुमण्डल के पोषण हेतु गोमूत्र तथा प्राणिजगत, विशेषतः मानवके पोषणके लिए दूध । इस कार गोमाताके कारण सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण होता है । इसलिए विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि ‘गावो विश्वस्य मातरः ।’ अर्थात गाय सम्पूर्ण विश्वकी माता है ।

२. गौमें सभी देवताओंके तत्त्व आकर्षित होते हैं
गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं । दत्तात्रेय देवताके साथ भी गौ है । उनके साथ विद्यमान गौ पृथ्वी का प्रतीक है । प्रत्येक सात्त्विक वस्तुमें कोई-ना-कोई देवताका तत्त्व आकर्षितहोता है । परंतु गौकी यह विशेषता है, कि उसमें सभी देवताओंके तत्त्व आकृष्ट होते हैं । इसीलिए कहते हैं, कि गौ में सर्व देवी-देवता वास करते हैं । गौसे प्राप्त सभी घटकोंमें, जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गोमूत्रमें सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं ।

३. गोवत्स द्वादशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
ऐसी कथा है कि समुद्रमंथनसे पांच कामधेनु उत्पन्न हुर्इं । उनमेंसे नंदा नामक धेनुको उद्देशित कर यह व्रत मनाया जाता है । वर्तमान एवं भविष्यके अनेक जन्मोंकी कामनाएं पूर्ण हों एवं पूजित गौके शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षोंका स्वर्गमें वास हो । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है । गोवत्स द्वादशी के दिन श्री विष्णुकी आपतत्त्वात्मक तरंगें सक्रिय होकर ब्रह्मांडमें आती हैं । इन तरंगोंका विष्णु लोक से ब्रह्मांड तक का वहन विष्णु लोक की एक कामधेनु अविरत करती हैं । उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कामधेनुके प्रतीकात्मक रूपमें इस दिन गौका पूजन किया जाता है ।

४. गोवत्स द्वादशी व्रतके अंतर्गत उपवास
इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां उपवास एक समय भोजन कर रखाती है । परंतु भोजन में गायका दूध अथवा उससे बने पदार्थ, जैसे दही, घी, छाछ एवं खीर तथा तेलमें पके पदार्थ, जैसे भुजिया, पकौडी इत्यादि ग्रहण नहीं करते, साथ ही इस दिन तवे पर पकाया हुआ भोजन भी नहीं करते । प्रातः अथवा सायंकाल में सवत्स गौ की पूजा की जाती हैं ।
५. गोवत्स द्वादशी को गौपूजन प्रात अथवा सायंकाल में करनेका शास्त्रीय.आधार
प्रातः अथवा सायंकाल में श्री विष्णु के प्रकट रूपकी तरंगें गौमें अधिक मात्रामें आकर्षित होती हैं । ये तरंगें श्री विष्णुके अप्रकट रूपकी तरंगोंको १० प्रतिशत अधिक मात्रामें गतिमान करती है । इसलिए गोवत्स द्वादशीको गौपूजन सामान्यतः प्रातः अथवा सायंकालमें करनेके लिए कहा गया है । उपरांत ‘इस गौ के शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षों तक मुझे स्वर्गसमान सुख की प्राप्ति हो, इसलिए मैं गौपूजन करता हूं । इस प्रकार संकल्प किया जाता है । प्रथम गौ पूजन का संकल्प किया जाता है । तत्पश्चात पाद्य, अर्घ्य, स्नान इत्यादि उपचार अर्पित किए जाते हैं। वस्त्र अर्पित किए जाते हैं । उपरांत गोमाता को चंदन, हलदी एवं कुमकुम अर्पित किया जाता है । उपरांत अलंकार अर्पित किए जाते हैं । पुष्पमाला अर्पित की जाती है । तदुपरांत गौके प्रत्येक अंगको स्पर्श कर न्यास किया जाता है । गौ पूजन के उपरांत बछडेको चंदन, हलदी, कुमकुम एवं पुष्पमाला अर्पित की जाती है । उपरांत गौ तथा उसके बछडेको धूपके रूपमें दो अगरबत्तियां दिखाई जाती हैं । उपरांत दीप दिखाया जाता है । दोनों को नैवेद्य अर्पित किया जाता है । उपरांत गौ की परिक्रमा की जाती है । पूजनके उपरांत पुनः गोमाता को भक्तिपूर्वक प्रणाम करना चाहिए । गौ प्राणी है । भय के कारण वह यदि पूजन करने न दें अथवा अन्य किसी कारण वश गौ का षोडशोपचार पूजन करना संभव न हों, तो पंचोपचार पूजन भी कर सकते हैं । इस पूजनके लिए पुरोहितकी आवश्यकता नहीं होती ।

६. गोवत्सद्वादशीसे मिलनेवाले लाभ
गोवत्सद्वादशीको गौपूजन का कृत्य कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।
इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचर में ईश्वरीय तत्त्व का दर्शन करनेकी सीख देता है । व्रती सभी सुखों को प्राप्त करता है ।
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