Tuesday, 23 February 2016

ABOUT US



1) Our Aim is to care for stray , abandoned cows , bulls , retired oxen , and orphaned calves. We provide them hay, flour, fresh grass , clean water , medical attention and a place where they can recuperate from injuries and stay peacefully.

2).Our Aim to protect the Cows & Improve their Feeding & Living Standards & keep them in clean atmosphere.

3). Our Aim to set up world class Spiritual Center for Human Beings for Peace , Prosperity & Good Health.

4). Our Aim to spread the awareness about the importance of cow.

5).Our Aim to know more about the rich properties of cow .
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देसी गाय का घी या गाय का देसीघी ?







आज भारत में बहुत बड़ी मात्रा में जर्सी और HF गाय का दूध और इस से ही बने घी को गाय का घी बता कर बेचा जा रहा है| वास्तविकता में इन जानवरों को गाय नहीं कहा जा सकता| भारतीय गाय का दूध A2 क्वालिटी का दूध होता है जबकि जर्सी का दूध A1 क्वालिटी का जो की जहर माना जाता है| कई जानी मानी कंपनिया भारत में इस A1 दूध से बने घी को गाय का देसी घी कह कर बेच रहे है| हमे गाय के देसी घी और देसी गाय के घी में अंतर समझना होगा |शोध के द्वारा पता चला हे की भारतीय देसी गाय के दूध में PROLINE नाम का एमिनो एसिड होता हे जो की INSOLEUCINE एमिनो एसिड से जुडा होता हे | इस दूध को A2 प्रकार का दूध कहते हे| इसमें कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता होती हे, जैसे मोटापा, कैंसर, अस्थमा, मानसिक रोग, जोड़ो का दर्द इत्यादि | A2 दूध में Omega ३ का स्तर बहुत ज्यादा होता हे, जो रक्त में जमे हुए cholestrol को कम करता है| A2 दूध में मोजूद Cerebrosidesa दिमाग की शक्ति के लिए बहुत उपयोगी होता हे और Strontium शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बडाता है| इसके विपरीत जो दूध और घी, गाय का देसी घी कह कर बाजार में बेचा जा रहा हे कही वो A1 क्वालिटी का तो नहीं है जो की उच्च रक्तचाप, मधुमेह, Autism, Metabolic degenerative disease और मानसिक रोगों का कारण बनता है | तो जब भी आप घी लेने जाए तो ये जरूर ध्यान दे की घी देसी गाय का हो न की गाय का देसी घी|

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Monday, 22 February 2016

गोपाष्टमी पर्व -गौ माता के पूजन कादिन

वैदिक सनातन धर्म में गाय को माँ के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गौमाता इक चलता फिरता साक्षात देवालय है जिसमे सभी 33 कोटि देवी देवता वास करते है गौ माता के गोबर में लक्ष्मी तथा मूत्र में माता गंगा का वास होता हैं ! गौ माता में तीनो गुण दैविक , दैहिक , भौतिक विद्यमान होते हैं ! अत: यह तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। गौ माता के पूजन से उनकी कृपा प्राप्ति होती हैं जिससे समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं ! गऊ माँ सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ सिद्धि प्रदान करने वाली है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में सर्वसुखप्रदा देवी कहा गया है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
★ क्या है गोपाष्टमी....
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण अपने अग्रज बलराम
जी के साथ नन्द बाबा व यशोदा मैया की अनुमति से गऊ चराने के लिये पहली बार बन गये थे
l गोपाष्टमी को गाय की विधिवत पूजा की जाती है ।वैसे तो गोपाष्टमी पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन ब्रज में तो यह एक प्रमुख पर्व के रूप में मनाई जाती है।
★कब मनाई जाती हैगोपाष्टमी...??
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है
★क्यूँ मनाते हैं
गोपाष्टमी? महाराज नंद जी ने यह उत्सव तब प्रारंभ किया था जब भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम पांच साल की आयु से बढ़ छठे साल में प्रवेश किया था और वे एक पूर्ण ग्वाले का रूप धारण कर चुके थे ! वृन्दावन में शिशुओं को जोकि पांच साल से छोटे या बराबर होते थे उन्हें सिर्फ बछड़ो की देखभाल करने को दिया जाता था ! जब शिशु छठे साल में प्रवेश करते थे तब ही उन्हें गाय की देखभाल करने व् चराने को दिया जाता था ! जब भगवान् श्री कृष्ण और बलराम जी भी छह साल की आयु में प्रवेश कर चुके तब नन्द बाबा ने उन्हें भी गौ चराने व् उनकी देखभाल करने का अवसर इसी दिन प्रदान किया था ! भगवान कृष्ण के इसप्रकार पूर्ण रूप से ग्वाले बन जाने की प्रक्रिया को वृन्दावन तथा सभी कृष्ण मंदिर में धूम धाम के साथ आज भी मनाया जाता हैं ! गौचरण करने के कारण ही श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है !
★कैसे करे गोपाष्टमी पूजन...!!
इस दिन भगवान् श्री कृष्ण, श्री बलराम और गौ माता की पूजा का विधान माना जाता हैं गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गाय की विधिवत पूजा की जाती है। जिसमें प्रातःकाल की बेला में गौचरण जाने के पूर्व गौमाता को स्नान कराया जाता है उसके उपरांत गौमाता को, श्रॄंगार की विभिन्न वस्तुओं, नवीन वस्त्रों व फूल मालाओ से श्रंगार कर गले में सुंदर घंटी व् पैरों में पैजनिया आदि पहनाकर सजाया जाता हैं ! गौ माता के सींगो पर चुनड़ी का पट्टा बाधा जाता हैं ! उसके उपरांत विधिपूर्वक रोली चंदन केसर अक्षत आदि से गऊ माता के ललाट पर तिलक करना चाहिये l गौ माता को सजाकर सच्चे ह्रदय से गौ माता का मनन करते हुए निम्न मंत्रोपचार करना चाहिए ! मंत्र "गावो में अग्रतः सन्तु, गावो में सन्तु पृष्ठतः ! गावो में सर्वतः सन्तु, गवां मध्ये वसाभ्यहम !!" इसके उपरान्त शंख ध्वनि आदि करते हुये धूप दीप से गौमाता की आरती की जानी चाहिये पूजा के बाद हरा चारा, घास, गुड़, जलेबी, फल व पौष्टिक आहार चना दाल आदि खिला कर गौमाता की परिक्रमा व साष्टांग दंडवत प्रणाम कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगा कर सभी परिजनों बंधुबान्धवों व विश्व के कल्याण की मंगल कामना करनी चाहिये l तदुपरान्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार गऊ माता के लिये पौष्टिक भोजन चारे आदि की व्यवस्था हेतु यथासम्भव दान करना चाहिये सायंकाल में गौ चारण से लौटती गौमाता को दंडवत प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। पौराणिक मान्यता है कि गोपाष्टमी पर निर्मल मन से गौमाता का विधिवत पूजन करने से गौमाता का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामना पूरी होती है। ऐसी भी आस्था है ‍कि इस दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़ा पुण्य मिलता है।
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गाय मिटाती है वास्तुदोष







1. वास्तु ग्रन्थ 'मयतम् ' में कहा गया है की जिस प्लाट पर भवन, घर का निर्माण करना हो, वहां पर बछड़े वाली गाय बांधने से वास्तु दोषों का स्वतः निवारण हो जाता है। नवजात बछड़े को जब गाय दुलार कर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिर कर उसे पवित्र बनता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है ।
2. महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठ कर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है। निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम् | विराजयति तं देशं पापं चास्यपकर्षति ||
3. सनातन धर्म के ग्रंथो में कहा गया है कि - सर्वे देवाः स्तिथा देहे सर्वा देवमयी हि गौ:। गाय के देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।
4. घर के आँगन में गाय रखने से घर सुखी और समृद्धिशाली बनता है। आँगन में गाय के होने पर घर के सभी वास्तुदोषों का बुरा प्रभाव स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
5. यदि कोई व्यक्ति गाय घर में नहीं रख सकता तो उसे सुबह शाम भगवान के सामने गाय के दूध से बने घी का दीपक लगाना चहिये। गाय के घी के दीपक से घर के वास्तु दोष दूर होते है। इसके प्रभाव से घर कई ऋणात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी निष्क्रिय होता है। घर का वातावरण शुद्ध होता है और परिवार के सदस्य निरोगी बने रहते है।
6. प्रातः स्नान के पश्चात गाय माता को स्पर्श करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
7. गौमूत्र भी वास्तुदोषों को दूर करने में लाभकारी है। घर में गोमूत्र छिड़कने से सभी वास्तुदोष निष्क्रिय हो जाते है। गौमूत्र के प्रभाव स घर में फैले सभी कीटाणु नष्ट हो जाते है।
8. गाय के पाँव की धूली का अपना महत्व है। गाय के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्थान का पुण्य मिलता है।
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गाय का पन्च्गव्य घी है अमृत,कई रोगो कोकरता है दूर







गाय का पन्च्गव्य घी है अमृत,कई रोगो को करता है दूर
गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है। गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है। गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है। (20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है। गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै। गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है। गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है। हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है। हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी। गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें। हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा। गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है। देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है। घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है। फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है। सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा। दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा। यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है।
वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है। एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है। गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
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