Tuesday, 14 July 2020

पद्म पुराण में गौ की व्याख्या


Jai gau mata
 पद्म पुराण में कहा गया है–
गौ को अपने प्राणों के समान समझे, उसके शरीर को अपने ही शरीर के तुल्य माने, जो गौ के शरीर में सफ़ेद और रंग-बिरंगी रचना करके, काजल, पुष्प, और तेल के द्वारा उनकी पूजा करते है, वह अक्षय स्वर्ग का सुख भोगते है. जो प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुठ्ठीभर घास देता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है जैसे ब्राहमण का महत्व है, वैसे ही गौ का महत्व है, दोनों की पूजा का फल समान है. भगवान के मुख से अग्नि, ब्राह्मण, देवता और गौ - ये चारो उत्पन्न हुए इसलिए ये चारो ही इस जगत केजन्मदाता है.गौ सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है .गौ की प्रत्येक वस्तु पावन है, गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे “पंचगव्य” कहते है इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता .जिसे गाय का दूध दही खाने नहीं मिलता उसका शरीर मल के समान है.
“ घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवा:. 
      घृतनघो घ्रातावर्त्तास्ता में सन्तु सदा गृहे” ..
जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है वह सबी पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है . गौ के
१. सीगों में भगवान श्री शंकर और श्रीविष्णु सदा विराजमान रहते है.
२. गौ के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा , ललाट में महादेवजी रहते है.
३. सीगों के अग्र भाग में इंद्र, दोनों कानो में अश्र्वि़नी कुमार, नेत्रो मे चंद्रमा और सूर्य, दांतों में गरुड़,जिह्वा मेंसरस्वती देवी का वास होता है .
४. अपान (गुदा)में सम्पूर्ण तीर्थ , मूत्र स्थान में गंगा जी , रोमकूपो में ऋषि , मुख और प्रष्ठ भाग में यमराज का वास होता है .
५. दक्षिण पार्श्र्व में वरुणऔर कुबेर, वाम पार्श्र्व में तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व , नासिका के अग्र भाग में सर्प , खुरों के पिछले भाग में अप्सराएँ वास करती है.
६. गोबर में लक्ष्मी , गोमूत्र में पार्वती , चरणों के अग्र भाग में आकाशचारी देवता वास करते है .
७. रँभाने की आवाज में प्रजापति और थनो में भरे हुए चारो समुद्र निवास करते है. 
जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है और उसके खुरों से उडाई हुई धुल को सिर पर धारण करता है वहमानो सारे तीर्थो के जल में स्नान कर लेता है, और सब पापों सेछुट जाता है.
दान का महत्त्व 
ब्राहमण को सफ़ेद गौ दान करने से, मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है. धुएं के समान रंग वाली गौ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है.कपिल गौ का दान अक्षय फल देने वाला है,कृष्ण गौ का दान देकर मनुष्य कभी कष्ट में नहीं पड़ता. भूरे रंग की गाय दुर्लभ है, गौर रंग वाली गाय कुल को आनंद प्रदान करने वाली होती है मन, वचन, क्रिया, से जो भी पाप बन जाते है, उन सबका कपिला गौ के दान से क्षय हो जाता है जो दस गौए और एक बैल दान करता है तो छोडे हुए सांड अपनी पूँछ से जो जल फेकता है, वह एक हजार वर्षों तक पितरो केलिए तर्प्तिदायक होता है, सांड या गाय के जितने रोएँ होते है उतने हजार वर्षों तक मनुष्य स्वर्ग में सुख भोगता है. जो गौ का हरण करके उसके बछड़े की मृत्यु का कारण बनता है वह महाप्रलयपर्यंन्त कीडों से भरे हुए कुँए में पड़ा रहता है, गौओ का वध करके मनुष्य अपने पितरो के साथ घोर रौरव नर्क में पड़ता है.
“जय जय श्री राधे ”




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Tuesday, 29 March 2016

ए2 गौ दूग्ध - a2 Desi cow's milk

ए2 गौ दूग्ध - a2 Desi cow's milk
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है।इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है।
भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है।
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है. भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं ।
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.
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Thursday, 10 March 2016

पंचगव्य एवं ग्रामीणअर्थव्यवस्था

पंचगव्य एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था
हमारे देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। प्राचीन काल से ही हमारे गाँव आर्थिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक तौर से आत्मनिर्भर थे। परंतु आजकल नजारा बदल गया है। बड़े-बड़े कारखाने खड़े कर दिए गए है। गाँवों को कच्चा माल देने वाला एक माध्यम बना लिया है। गाँव के अंदर जो अनेक कारीगर थे बढ़ई, लुहार, राजमिस्त्री, उन सब लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। गाँव के लोग बेकार हो गए हैं और शहर की तरफ दौड़ने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं है। शहर में भी कोई काम न मिलने के कारण वे अनेक गैरकानूनी कामों में लिप्त हो गए है। भारत की अर्थव्यवस्था जो सदियों से कायम थी, छिन्न-भिन्न हो गई है। 
पंचगव्य -
प्राचीन काल से ही गाय को पूरे भारत वर्ष में माता की तरह पूजा जाता है। यह किसी करुणा वश या प्रेम भाव में बहकर नहीं किया जाता। अपितु हमारे पूर्वजों ने गाय के महत्त्व को समझा एवं सब कुछ जानने के बाद ही वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि गाय में पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सम्भालने की क्षमता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से गाय दूध, घी, दही, गोमूत्र, गोमय (गोबर) आदि का स्थान-स्थान पर महत्त्व बतलाया गया है। इन द्रव्यों को आयुर्वेद में 'गव्य' कहा गया है। पाँचों को मिलाकर पंचगव्य कहते हैं। हमारा भारत वर्ष अभी कितनी ही अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है। इस वर्तमान अर्थव्यस्था में गोपालन एवं पंचगव्य ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो हमारे गाँव को पुनः आत्मनिर्भर बना सकती है। पंचगव्य एंव गोपालन ग्रामीण कृषि, ऊर्जा स्रोत, चिकित्सा, घरेलू उपयोगी वस्तुएँ, रोजगार आदि का मूल आधार बने तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों का नजारा ही बदल सकता है।
पंचगव्य एवं कृषि-
गाय के गोबर से सर्वोत्तम खाद तथा गोमूत्र से कीट नियंत्रक औषधियाँ निर्मित होती हैं— यह एक अभिप्रमाणित तथ्य है। गौ आधारित कीटनाशक तथा जैविक खाद कम खर्च में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ही तैयार किए जा सकते हैं। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि जैविक खाद एवं कीटनाशक जमीन की उर्वरा शक्ति को
बढ़ाते हैं एवं यह पर्यावरण मित्रवत भी है। इनसे उत्पादित पदार्थों की गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं प्रति यूनिट उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है। जैविक खादों में कम लागत व गुणोत्तर उत्पादन से सकल आय में बढ़ोत्तरी होती है। जैविक खेती गाँवों के बेरोजगार लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करती है। कई पश्चिमी देश भी रासायनिक विधि को छोड़कर जैविक खेती की ओर जा रहे हैं। भारत में कृषि क्षेत्र छोटे-छोटे वर्गों में बँटा हुआ है, जहाँ हरेक के लिए ट्रैक्टर रख पाना सम्भव नहीं है। कई शोधों द्वारा यह पता चला है कि ट्रैक्टर के प्रयोग से हमारी धरती की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह प्रदूषण का भी कारण है। बैलचालित आधुनिक ट्रैक्टर द्वारा इन सब समस्याओं का हल किया जा सकता है। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बैलचालित ट्रैक्टर ही आर्थिक तौर पर सही है।

पंचगव्य ग्रामीण ऊर्जा का स्रोत
भारत वर्ष में कृषि, व्यावसायिक व घरेलू उपयोग में प्रयोग की जा रही ऊर्जा का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम है। इसके लिए हमें विदेशों पर आश्रित रहना पड़ता है। कुल गोवंशीय पशुओं से हमारे देश में लगभग 11,500 लाख टन गोबर प्रतिवर्ष मिलता है। यदि इस गोबर से बायोगैस प्लांट संचालित किया जाए तो हमारी अधिकांश ऊर्जा समस्या समाप्त हो जाएगी और हमें किसी पर आश्रित भी नहीं रहना पड़ेगा।
गोबर गैस संयंत्र अनुपयोगी गोवंश के गोबर से भी चलाया जा सकता है। इससे प्राप्त गैस का प्रयोग ईंधन व रोशनी के लिए किया जा सकता है, जिससे वनों की कटाई के दबाव को कम किया जा सकता है और पेट्रोलियम की खपत भी कम की जा सकती है। ग्रामीणों को बिना धुएं का स्वच्छ ईंधन भी मिल जाएगा। गोबर गैस संयंत्र से जेनरेटर चलाकर बिजली भी पैदा की जा सकती है। कृषि के सभी कार्यों के साथ-साथ भारवाहन यातायात का मुख्य स्रोत गाँवों में बैल ही है। बैलचालित ट्रैक्टर, बैलचालित जेनरेटर तथा बैलगाड़ी के प्रयोग से गाँव की वर्तमान स्थिति को बदला जा सकता है जो कि पेट्रोलियम पर आधारित है। इनके प्रयोग से रोजगार के अवसर भी खुलेंगे। बायोगैस बॉटलिंग पर भी आजकल शोध चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस पर भी काफी सफलता हासिल कर ली है। इसके पूरा हो जाने पर बायोगैस को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए पाइपों की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पंचगव्य चिकित्सा
दवाओं, डॉक्टरों और अस्पतालों पर आजकल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं फिर भी रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गाँवों के गरीब महंगी आधुनिक चिकित्सा कराने में असमर्थ हैं। हमारा आर्ष साहित्य गो महिमा से भरा हुआ है। अब विज्ञान भी गोबर व गोमूत्र के गुणों को समझने लगा है। आयुर्वेद शास्त्र में गोदुग्ध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र की स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में असीम महिमा वर्णित की गई है। अधिकतर सभी रोगों का इलाज 'पंचगव्य' चिकित्सा में मौजूद है। इससे सम्बन्धित कई प्रमाण वैज्ञानिकों ने पेश किए हैं। गोमूत्र में ताम्र, लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य खनिज जैसे—कार्बोलिक एसिड, पोटाश और लैक्टोज नामक तत्व मिलते हैं। गोबर में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्जीन, कॉपर, बोरीन, मालीन्डनम आदि तत्व पाए जाते हैं, इन तत्वों के कारण गोमूत्र-गोबर से विविध प्रकार की औषधियाँ बनती हैं और यह सभी प्रकार के रोगों पर काम करती है।

पंचगव्य एवं मनुष्य का पोषण
गाय का दूध किसी भी अन्य दूध के मुकाबले ज्यादा श्रेष्ठ है इसीलिए आज भी डॉक्टर नन्हें- मुन्हें बच्चों को ऊपर का दूध पिलाने के लिए गाय के दूध की ही सलाह देते हैं। गाय के दूध में वसा, कार्बोहाइट्रेट, प्रोटीन के अलावा अन्य.एन्जायम पाए जाते हैं जो हमारे भोजन को.सुपाच्य बनाते हैं। धरती पर दूध ही एक ऐसा तत्व है जिसे पूर्ण आहार माना गया है। इसमें हमारे शरीर के विकास व वृद्धि के लिए आवश्यक सभी तत्व उपलब्ध हैं। दूध एवं दूध के अन्य उत्पाद से गाँव में रोजगार के काफी अवसर खुल जाएंगे।

पंचगव्य घरेलू उपयोगी वस्तुए
गोमूत्र व गोमय की विशिष्टताओं के कारण न केवल उनका प्रयोग रोगों के शमन के लिए किया जा सकता है बल्कि अनेक ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो कुटीर उद्योग व ग्रामोद्योग का आधार बन सकते हैं। इससे त्वचा रक्षक साबुन, दंतमंजन, डिस्टेम्पर, धूपबत्ती, फिनायल, शैम्पू, उबटन, तेल, मच्छर विनाशक, मरहम आदि बनते हैं। इन सभी वस्तुओं का उत्पादन गौशालाएँ आयुर्वेद के आधार पर कर रही हैं, जिनका संतुष्टी विश्लेषण भी किया गया है। इस रिपोर्ट के हिसाब से सभी उपभोक्ता 80-90 प्रतिशत संतुष्ट हैं तथा सभी ने इन वस्तुओं के अनेक फायदे भी बताए हैं।

पंचगव्य एवं रोजगार
उपर्युक्त सभी बातों से यह स्पष्ट हो चुका है कि अगर गोवंश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों की कई समस्याओं के साथ रोजगार की सबसे बड़ी समस्या भी दूर हो जाएगी, फिर से गाँव आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा जो अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी फिर से कायम हो जाएगी।

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गोवत्स द्वादशी


गोवत्स द्वादशी

सत्त्वगुणी, अपने सान्निध्यसे दूसरोंको पावन करनेवाली, अपने दूधसे समाजको पुष्ट करनेवाली, अपना अंग-प्रत्यंग समाजके लिए अर्पित करनेवाली, खेतोंमें अपने गोबरकी खादद्वारा उर्वराशक्ति बढानेवाली, ऐसी गौ सर्वत्र पूजनीय है । हिंदू कृतज्ञतापूर्वक गौ को माता कहते हैं । जहां गोमाता का संरक्षण-संवर्धन होता है, भक्तिभावसे उसका पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता। भारतीय संस्कृति में गौ को अत्यंत महत्त्व दिया गया है । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभ में आती है । यह गोमाता का सवत्स अर्थात उसके बछडेके साथ पूजन करने का दिन है ।

१. गोमाता काे सम्पूर्ण विश्वकी माता क्याें कहते हैं ?
गोमाताकी रीढमें सींगसे पूंछतक ‘सूर्यकेतु’ नामक एक विशेष नाडी होती है । गोमाता अपने सींगोंके माध्यमसे सूर्यकी ऊर्जा अवशोषित करती है तथा ‘सूर्यकेतु’ नाडीमें वाहित करती है । सूर्यसे मिलने वाली ऊर्जा दो प्रकारकी होती है । क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा । क्रिया ऊर्जा गति तथा ज्ञा ऊर्जा विचारशक्ति दान करती है । जुगाली की क्रियाके समय सूर्यसे प्राप्त दोनों ऊर्जाआेंको चबाकर वह अन्नमें मिला देती है । औषधीय वनस्पतियों के रस, क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा का संयोग होकर एक अमृत गोमाता के उदर में पहुंचता है । वहां सर्व पाचन पूर्ण होनेके पश्चात यह अमृत तीन भागोंमें बंटता है – पृथ्वीके पोषण हेतु गोमय, वायुमण्डल के पोषण हेतु गोमूत्र तथा प्राणिजगत, विशेषतः मानवके पोषणके लिए दूध । इस कार गोमाताके कारण सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण होता है । इसलिए विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि ‘गावो विश्वस्य मातरः ।’ अर्थात गाय सम्पूर्ण विश्वकी माता है ।

२. गौमें सभी देवताओंके तत्त्व आकर्षित होते हैं
गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं । दत्तात्रेय देवताके साथ भी गौ है । उनके साथ विद्यमान गौ पृथ्वी का प्रतीक है । प्रत्येक सात्त्विक वस्तुमें कोई-ना-कोई देवताका तत्त्व आकर्षितहोता है । परंतु गौकी यह विशेषता है, कि उसमें सभी देवताओंके तत्त्व आकृष्ट होते हैं । इसीलिए कहते हैं, कि गौ में सर्व देवी-देवता वास करते हैं । गौसे प्राप्त सभी घटकोंमें, जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गोमूत्रमें सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं ।

३. गोवत्स द्वादशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
ऐसी कथा है कि समुद्रमंथनसे पांच कामधेनु उत्पन्न हुर्इं । उनमेंसे नंदा नामक धेनुको उद्देशित कर यह व्रत मनाया जाता है । वर्तमान एवं भविष्यके अनेक जन्मोंकी कामनाएं पूर्ण हों एवं पूजित गौके शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षोंका स्वर्गमें वास हो । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है । गोवत्स द्वादशी के दिन श्री विष्णुकी आपतत्त्वात्मक तरंगें सक्रिय होकर ब्रह्मांडमें आती हैं । इन तरंगोंका विष्णु लोक से ब्रह्मांड तक का वहन विष्णु लोक की एक कामधेनु अविरत करती हैं । उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कामधेनुके प्रतीकात्मक रूपमें इस दिन गौका पूजन किया जाता है ।

४. गोवत्स द्वादशी व्रतके अंतर्गत उपवास
इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां उपवास एक समय भोजन कर रखाती है । परंतु भोजन में गायका दूध अथवा उससे बने पदार्थ, जैसे दही, घी, छाछ एवं खीर तथा तेलमें पके पदार्थ, जैसे भुजिया, पकौडी इत्यादि ग्रहण नहीं करते, साथ ही इस दिन तवे पर पकाया हुआ भोजन भी नहीं करते । प्रातः अथवा सायंकाल में सवत्स गौ की पूजा की जाती हैं ।
५. गोवत्स द्वादशी को गौपूजन प्रात अथवा सायंकाल में करनेका शास्त्रीय.आधार
प्रातः अथवा सायंकाल में श्री विष्णु के प्रकट रूपकी तरंगें गौमें अधिक मात्रामें आकर्षित होती हैं । ये तरंगें श्री विष्णुके अप्रकट रूपकी तरंगोंको १० प्रतिशत अधिक मात्रामें गतिमान करती है । इसलिए गोवत्स द्वादशीको गौपूजन सामान्यतः प्रातः अथवा सायंकालमें करनेके लिए कहा गया है । उपरांत ‘इस गौ के शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षों तक मुझे स्वर्गसमान सुख की प्राप्ति हो, इसलिए मैं गौपूजन करता हूं । इस प्रकार संकल्प किया जाता है । प्रथम गौ पूजन का संकल्प किया जाता है । तत्पश्चात पाद्य, अर्घ्य, स्नान इत्यादि उपचार अर्पित किए जाते हैं। वस्त्र अर्पित किए जाते हैं । उपरांत गोमाता को चंदन, हलदी एवं कुमकुम अर्पित किया जाता है । उपरांत अलंकार अर्पित किए जाते हैं । पुष्पमाला अर्पित की जाती है । तदुपरांत गौके प्रत्येक अंगको स्पर्श कर न्यास किया जाता है । गौ पूजन के उपरांत बछडेको चंदन, हलदी, कुमकुम एवं पुष्पमाला अर्पित की जाती है । उपरांत गौ तथा उसके बछडेको धूपके रूपमें दो अगरबत्तियां दिखाई जाती हैं । उपरांत दीप दिखाया जाता है । दोनों को नैवेद्य अर्पित किया जाता है । उपरांत गौ की परिक्रमा की जाती है । पूजनके उपरांत पुनः गोमाता को भक्तिपूर्वक प्रणाम करना चाहिए । गौ प्राणी है । भय के कारण वह यदि पूजन करने न दें अथवा अन्य किसी कारण वश गौ का षोडशोपचार पूजन करना संभव न हों, तो पंचोपचार पूजन भी कर सकते हैं । इस पूजनके लिए पुरोहितकी आवश्यकता नहीं होती ।

६. गोवत्सद्वादशीसे मिलनेवाले लाभ
गोवत्सद्वादशीको गौपूजन का कृत्य कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।
इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचर में ईश्वरीय तत्त्व का दर्शन करनेकी सीख देता है । व्रती सभी सुखों को प्राप्त करता है ।
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गीर गाय

भारत में सनातन काल से पायी जाने वाली "गीर" गाय जो 65 लीटर दूध देने का रिकार्ड बना चुकी है, जो देशी नस्ल की टिकाऊ और बीमार न होने वाली गाय है । उसी को यदि ब्रीडिंग किया गया होता तो आज भारत में हर तरफ दुधारू गायों का तांता लग गयाहोता । गीर गाय शारीर से भारी होने के साथ साथ हर मामले में भैंस को मात देती है । यह भैंस से कम खाती है लेकिन दूध भैंस से ज्यादा और गाढा होता है । भैंस बदबू मारती है लेकिन गाय से जगह शुद्ध होती है । गीर गाय देशी होने के कारण इसका दूध दवा है । यह गाय गोबर और गो-मूत्र भरपूर मात्रा में देती है । शुद्ध गीर गाय भारत में सिर्फ 5000 की संख्या में ही बची है ।
एक साजिश के तहत विदेशियों ने भारत में जर्सी गाय (एक प्रकार का सूअर) देकर भारत की निरोगित देशी गायो को कटवाकर सब मांस यूरोप में सप्लाई करवा लिया और यह अभी तक जारी है । गीर गायों का व्यापक ब्रीडिंग होने से लोग भैंस पालना कम कर देंगे । गीर गाएं भरी मात्रा में विदेशों को बेचीं गयी, खासकर ब्राजील में । इस पर रोक लगाकर भारत के हर गाँव में गीर गाय की नस्ल पहुचाई जाये और यह काम सरकार ही कर सकती है ।

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