पंचगव्य एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था
हमारे देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। प्राचीन काल से ही हमारे गाँव आर्थिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक तौर से आत्मनिर्भर थे। परंतु आजकल नजारा बदल गया है। बड़े-बड़े कारखाने खड़े कर दिए गए है। गाँवों को कच्चा माल देने वाला एक माध्यम बना लिया है। गाँव के अंदर जो अनेक कारीगर थे बढ़ई, लुहार, राजमिस्त्री, उन सब लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। गाँव के लोग बेकार हो गए हैं और शहर की तरफ दौड़ने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं है। शहर में भी कोई काम न मिलने के कारण वे अनेक गैरकानूनी कामों में लिप्त हो गए है। भारत की अर्थव्यवस्था जो सदियों से कायम थी, छिन्न-भिन्न हो गई है।
पंचगव्य -
प्राचीन काल से ही गाय को पूरे भारत वर्ष में माता की तरह पूजा जाता है। यह किसी करुणा वश या प्रेम भाव में बहकर नहीं किया जाता। अपितु हमारे पूर्वजों ने गाय के महत्त्व को समझा एवं सब कुछ जानने के बाद ही वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि गाय में पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सम्भालने की क्षमता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से गाय दूध, घी, दही, गोमूत्र, गोमय (गोबर) आदि का स्थान-स्थान पर महत्त्व बतलाया गया है। इन द्रव्यों को आयुर्वेद में 'गव्य' कहा गया है। पाँचों को मिलाकर पंचगव्य कहते हैं। हमारा भारत वर्ष अभी कितनी ही अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है। इस वर्तमान अर्थव्यस्था में गोपालन एवं पंचगव्य ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो हमारे गाँव को पुनः आत्मनिर्भर बना सकती है। पंचगव्य एंव गोपालन ग्रामीण कृषि, ऊर्जा स्रोत, चिकित्सा, घरेलू उपयोगी वस्तुएँ, रोजगार आदि का मूल आधार बने तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों का नजारा ही बदल सकता है।
पंचगव्य एवं कृषि-
गाय के गोबर से सर्वोत्तम खाद तथा गोमूत्र से कीट नियंत्रक औषधियाँ निर्मित होती हैं— यह एक अभिप्रमाणित तथ्य है। गौ आधारित कीटनाशक तथा जैविक खाद कम खर्च में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ही तैयार किए जा सकते हैं। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि जैविक खाद एवं कीटनाशक जमीन की उर्वरा शक्ति को
बढ़ाते हैं एवं यह पर्यावरण मित्रवत भी है। इनसे उत्पादित पदार्थों की गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं प्रति यूनिट उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है। जैविक खादों में कम लागत व गुणोत्तर उत्पादन से सकल आय में बढ़ोत्तरी होती है। जैविक खेती गाँवों के बेरोजगार लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करती है। कई पश्चिमी देश भी रासायनिक विधि को छोड़कर जैविक खेती की ओर जा रहे हैं। भारत में कृषि क्षेत्र छोटे-छोटे वर्गों में बँटा हुआ है, जहाँ हरेक के लिए ट्रैक्टर रख पाना सम्भव नहीं है। कई शोधों द्वारा यह पता चला है कि ट्रैक्टर के प्रयोग से हमारी धरती की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह प्रदूषण का भी कारण है। बैलचालित आधुनिक ट्रैक्टर द्वारा इन सब समस्याओं का हल किया जा सकता है। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बैलचालित ट्रैक्टर ही आर्थिक तौर पर सही है।
पंचगव्य ग्रामीण ऊर्जा का स्रोत
भारत वर्ष में कृषि, व्यावसायिक व घरेलू उपयोग में प्रयोग की जा रही ऊर्जा का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम है। इसके लिए हमें विदेशों पर आश्रित रहना पड़ता है। कुल गोवंशीय पशुओं से हमारे देश में लगभग 11,500 लाख टन गोबर प्रतिवर्ष मिलता है। यदि इस गोबर से बायोगैस प्लांट संचालित किया जाए तो हमारी अधिकांश ऊर्जा समस्या समाप्त हो जाएगी और हमें किसी पर आश्रित भी नहीं रहना पड़ेगा।
गोबर गैस संयंत्र अनुपयोगी गोवंश के गोबर से भी चलाया जा सकता है। इससे प्राप्त गैस का प्रयोग ईंधन व रोशनी के लिए किया जा सकता है, जिससे वनों की कटाई के दबाव को कम किया जा सकता है और पेट्रोलियम की खपत भी कम की जा सकती है। ग्रामीणों को बिना धुएं का स्वच्छ ईंधन भी मिल जाएगा। गोबर गैस संयंत्र से जेनरेटर चलाकर बिजली भी पैदा की जा सकती है। कृषि के सभी कार्यों के साथ-साथ भारवाहन यातायात का मुख्य स्रोत गाँवों में बैल ही है। बैलचालित ट्रैक्टर, बैलचालित जेनरेटर तथा बैलगाड़ी के प्रयोग से गाँव की वर्तमान स्थिति को बदला जा सकता है जो कि पेट्रोलियम पर आधारित है। इनके प्रयोग से रोजगार के अवसर भी खुलेंगे। बायोगैस बॉटलिंग पर भी आजकल शोध चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस पर भी काफी सफलता हासिल कर ली है। इसके पूरा हो जाने पर बायोगैस को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए पाइपों की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पंचगव्य चिकित्सा
दवाओं, डॉक्टरों और अस्पतालों पर आजकल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं फिर भी रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गाँवों के गरीब महंगी आधुनिक चिकित्सा कराने में असमर्थ हैं। हमारा आर्ष साहित्य गो महिमा से भरा हुआ है। अब विज्ञान भी गोबर व गोमूत्र के गुणों को समझने लगा है। आयुर्वेद शास्त्र में गोदुग्ध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र की स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में असीम महिमा वर्णित की गई है। अधिकतर सभी रोगों का इलाज 'पंचगव्य' चिकित्सा में मौजूद है। इससे सम्बन्धित कई प्रमाण वैज्ञानिकों ने पेश किए हैं। गोमूत्र में ताम्र, लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य खनिज जैसे—कार्बोलिक एसिड, पोटाश और लैक्टोज नामक तत्व मिलते हैं। गोबर में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्जीन, कॉपर, बोरीन, मालीन्डनम आदि तत्व पाए जाते हैं, इन तत्वों के कारण गोमूत्र-गोबर से विविध प्रकार की औषधियाँ बनती हैं और यह सभी प्रकार के रोगों पर काम करती है।
पंचगव्य एवं मनुष्य का पोषण
गाय का दूध किसी भी अन्य दूध के मुकाबले ज्यादा श्रेष्ठ है इसीलिए आज भी डॉक्टर नन्हें- मुन्हें बच्चों को ऊपर का दूध पिलाने के लिए गाय के दूध की ही सलाह देते हैं। गाय के दूध में वसा, कार्बोहाइट्रेट, प्रोटीन के अलावा अन्य.एन्जायम पाए जाते हैं जो हमारे भोजन को.सुपाच्य बनाते हैं। धरती पर दूध ही एक ऐसा तत्व है जिसे पूर्ण आहार माना गया है। इसमें हमारे शरीर के विकास व वृद्धि के लिए आवश्यक सभी तत्व उपलब्ध हैं। दूध एवं दूध के अन्य उत्पाद से गाँव में रोजगार के काफी अवसर खुल जाएंगे।
पंचगव्य घरेलू उपयोगी वस्तुए
गोमूत्र व गोमय की विशिष्टताओं के कारण न केवल उनका प्रयोग रोगों के शमन के लिए किया जा सकता है बल्कि अनेक ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो कुटीर उद्योग व ग्रामोद्योग का आधार बन सकते हैं। इससे त्वचा रक्षक साबुन, दंतमंजन, डिस्टेम्पर, धूपबत्ती, फिनायल, शैम्पू, उबटन, तेल, मच्छर विनाशक, मरहम आदि बनते हैं। इन सभी वस्तुओं का उत्पादन गौशालाएँ आयुर्वेद के आधार पर कर रही हैं, जिनका संतुष्टी विश्लेषण भी किया गया है। इस रिपोर्ट के हिसाब से सभी उपभोक्ता 80-90 प्रतिशत संतुष्ट हैं तथा सभी ने इन वस्तुओं के अनेक फायदे भी बताए हैं।
पंचगव्य एवं रोजगार
उपर्युक्त सभी बातों से यह स्पष्ट हो चुका है कि अगर गोवंश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों की कई समस्याओं के साथ रोजगार की सबसे बड़ी समस्या भी दूर हो जाएगी, फिर से गाँव आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा जो अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी फिर से कायम हो जाएगी।